What is GTT Test ?
GTT Test क्या है ? और इसकी किस तरह जांच कराई जाती है ? और GTT Test की गर्भावस्था ( Pregnancy ) के दौरान नार्मल रेंज ( Normal Range During Pregnancy ) कितनी होती है। हम इसके बारे में आज विस्तार से जानेगें और इसके बचाव के तरीकों के बारे में आज डिस्कस करेंगे।
GTT ( Glucose Tolerance Test ) यानि शरीर में शुगर को कंट्रोल करने की क्षमता कम हो जाती है। जिसके के कारण शरीर में शुगर बढ़ जाती है। GTT ( Glucose Tolerance Test ) इस तरह की शुगर ( Diabetes ) को Gestational Diabetes कहा जाता है । ये अक्सर गर्भवती महिलाओं में होती है। इसे गर्भकालीन मधुमेय भी कहा जाता है। ये मधुमेय ( Diabetes ) गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाब की वजह से हो जाती है। इसकी वजह से शुगर कंट्रोल क्षमता कम हो जाती है ।
अगर गर्भवती महिला खान-पान ( Diet ) में सुधार करके और थोड़ा व्यामाम ( Excercise ), योगा ( Yoga ) करके इस प्रॉब्लेम से निजात पा सकती हैं। जीवनशैली में सुधार करने से Gestational Diabetes में बचा जा सकता है। और बेबी को होने वाले प्रॉब्लेम से बचाया जा सकता है ।
How to Do GTT Blood Test ? जीटीटी टेस्ट कैसे होता है
GTT test के लिए सबसे पहले 8-14 घंटे का भूखा रहना जरूरी है। ये टेस्ट करने के लिए Fasting बहुत ही जरूरी होता है। अगर आपने Fasting का समय कम रखा है तो इसे दोबारा कर होगा । GTT टेस्ट कराने के लिए खाली पेट सैम्पल लिया जाता है। इसके बाद 100g ग्लूकोस पिलाया जाता है। फिर उसके 1 घंटे के अंतराल के बाद सैम्पल लिया जाता है । तीसरा ब्लड सैम्पल 2 घंटे के अंतराल के बाद लिया जाता है। इस टेस्ट मे समय पर ब्लड सैम्पल लेना बहुत जरूरी है तभी ब्लड रिपोर्ट सही आएगी ।
खालीपेट शुगर ( Fasting Glucose ) | 60 to 90 mg/dl |
1 घंटे के अंतराल के बाद शुगर ( 1 Hour Glucose ) | <180 |
2 घंटे के अंतराल के बाद शुगर ( 2 Hour Glucose ) | <140 |
GTT Test कराने का समय
गर्भवती महिलाओं में गर्भ से पहले मधुमेय ( Diabetes ) होना जरूरी नहीं है। कई बार मरीज मानने से मना करता है कि पहले मधुमेय नहीं था। अचानक हुए परिवर्तन को समझना मुश्किल हो जाता है। कई बार मरीज इसका उपचार ना लेके गर्भ में पल रहे बेबी को भी खतरे में डाल डेटेन हैं। डॉक्टर हमेशा GTT Test 24-28 हफ्ते के बीच कराते हैं। जिससे रिपोर्ट में इसकी सही जानकारी आती है। क्योंकि इसी समय दौरान गर्भवती महिलाओं में बहुत तेजी से हार्मोनल चेंजेस होते है।
Gestational Diabetes से बच्चे पर होने वाले असर
माँ के गर्भ में बेबी बहुत ही नाजुक स्थिति में होता है। उसका हर पल ध्यान रखा जाता है। बेबी को कब किस चीज की जरूरत है उसका ध्यान भी जरूरी जांच समय-समय कराते रहने से रखना पड़ता है। समय पर जांच कराते रहने से बेबी की डेवलपमेंट पता लगती रहती है।
जब जांच में Gestational Diabetes आती तब बेबी पर की तरह के असर हो सकते हैं, इसीलिए इस जांच में पाज़िटिव आने के बाद डॉक्टर द्वारा शुगर की दवा दी जाती है । जिससे बेबी के डेवलपमेंट में कोई कमी ना रह जाए । Gestational Diabetes के कारण बेबी को ये प्रॉब्लेम हो सकती है ।
1- बेबी की वक्त से पहले डिलीवरी हो सकती है ।
2- बेबी का गर्भ में ही वजन ज्यादा बढ़ सकता है ।
3- बेबी अस्वस्थ कन्डिशन में जन्म लेता है ।
4- बेबी को जन्म के बाद झटके या दौरे जैसे पढ़ सकते हैं ।
5- बेबी की गर्भ में हर्ट बीट बढ़ने से ह्रदय गति रुक सकती है ।
6- जन्म के बाद बेबी को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
7- जन्म के बाद बेबी को पीलिया होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
8- बेबी को जन्म को बाद ज्यादा मोटापा हो सकता है ।
9- बेबी हार्ट प्रॉब्लेम के साथ और दिमागी प्रॉब्लेम के साथ भी जन्म ले सकता है।
लेकिन ये तभी होता है जब माँ अपनी Gestational Diabetes या कहें शुगर को नियंत्रित करने के लिए कोई उपाय ना करे । और अपने खान-पान ( Diet ) में और जीवनशैली में बदलाब ना करे। डॉक्टर के परामर्श अनुसार दवा ना लें तभी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है।
इसलिए कह सकते है की डॉक्टर की सलाह और देखभाल से सब ठीक किया जा सकता है। मीठे का सेवन बिल्कुल ना करें और जीवनशैली में बदलाब लाए, शुगर को नियंत्रित करलें। इस समस्या से बचा जा सकता है।
Disclaimer
इस आर्टिकल में शेयर की गई जानकारी, उपचार के तरीके, और विधि आपकी जानकारी और बचाव के लिए है। कायाबज.इन इसकी नैतिक जिम्मेदारी नहीं लेता । ये जानकारी और सुझाव मात्र शिक्षित करने के लिए हैं। इस तरह की कोई भी उपचार और दवा लेने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें ।